हाल ही में अमर उजाला द्वारा आयोजित एक संवाद में अभिनेत्री कंगना रनौत ने अपनी नई फिल्म 'इमरजेंसी' के बारे में बातचीत की। इस फिल्म में कंगना इंदिरा गांधी की भूमिका निभा रही हैं और यह फिल्म भारत के राजनीतिक इतिहास के एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद समय, 1975 से 1977 के इमरजेंसी पर आधारित है।


कंगना ने इस दौरान सेंसर बोर्ड (CBFC) द्वारा फिल्म की मंजूरी को लेकर चिंता व्यक्त की। उन्होंने दावा किया कि फिल्म को केवल तीन-चार दिन पहले ही CBFC द्वारा मंजूरी दी गई, जबकि इसके रिलीज को लेकर पहले से कई मुद्दे उठे थे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह स्थिति सवाल उठाती है कि क्या भारतीय सिनेमा में कला की स्वतंत्रता को सीमित किया जा रहा है।


फिल्म की थीम

'इमरजेंसी' एक राजनीतिक थ्रिलर है जो उस समय के दौरान भारत में हुई घटनाओं को दर्शाती है जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की थी। कंगना का मानना है कि इस फिल्म के माध्यम से दर्शकों को उस कठिन समय की गंभीरता और इसके सामाजिक-राजनीतिक प्रभावों को समझने का अवसर मिलेगा।


CBFC की भूमिका

कंगना ने कहा कि CBFC के इस तरह के निर्णय दरअसल फिल्म निर्माताओं के लिए चुनौतीपूर्ण हैं। उन्हें लगता है कि यह स्पष्ट नहीं है कि सेंसर बोर्ड किस आधार पर फिल्म को मंजूरी देता है और इससे फिल्म निर्माण में रचनात्मकता पर असर पड़ता है। कंगना ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि उन्हें यह सुनकर आश्चर्य हुआ कि फिल्म को अंतिम समय में अनुमति दी गई।


फिल्म की रिलीज

'इमरजेंसी' को लेकर दर्शकों में उत्सुकता है, और इसमें कंगना का अभिनय कई कारणों से चर्चा का विषय बना हुआ है। कंगना हमेशा अपनी बेबाक टिप्पणियों और विचारों के लिए जानी जाती हैं, और इस बार भी उनकी बातें इस मुद्दे को और अधिक दिलचस्प बनाती हैं।


समापन

कंगना रनौत की 'इमरजेंसी' न केवल एक फिल्म है, बल्कि यह भारतीय राजनीति के एक महत्वपूर्ण अध्याय की पुनर्व्याख्या भी करती है। इस फिल्म की रिलीज के साथ, एक बार फिर से भारतीय सिनेमा में राजनीतिक चर्चाएं तेज होंगी। कंगना का यह कहना कि एक फिल्म को रिलीज से पहले मंजूरी मिलने में इतना कम समय लगाना दर्शाता है कि सिनेमा की स्वतंत्रता एक संवेदनशील मुद्दा है, जो आज के समय में अधिक महत्वपूर्ण है।