Diwali 2024 Laxmi Puja Muhurat: दिवाली 30 अक्टूबर को मनाएं या 01 नवंबर को? जानिए लक्ष्मी पूजन के शुभ मुहूर्त और सही समय


दिवाली की तारीख को लेकर असमंजस


इस वर्ष दिवाली की तारीख को लेकर कुछ भ्रम की स्थिति बनी हुई है। दरअसल, कार्तिक माह की अमावस्या तिथि दो दिन के लिए पड़ रही है, जिससे यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि दिवाली कब मनाई जाए - 31 अक्टूबर को या 01 नवंबर को? कुछ स्थानों पर दिवाली 31 अक्टूबर को मनाने का सुझाव दिया जा रहा है, तो कुछ स्थानों पर 01 नवंबर को। हर किसी के मन में यह सवाल है कि लक्ष्मी पूजन कब किया जाए, ताकि मां लक्ष्मी की कृपा बरस सके।

दिवाली हिन्दू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, जिसे दीपोत्सव भी कहा जाता है। यह पर्व अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक माना जाता है। दिवाली पर घरों को दीयों और रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया जाता है और लक्ष्मी माता की पूजा-अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि दिवाली की रात मां लक्ष्मी पृथ्वी लोक पर आती हैं और जिन घरों में साफ-सफाई, रोशनी और पूजा होती है, वहां आकर वे निवास करती हैं।


असमंजस का कारण


इस बार अमावस्या तिथि का पड़ना दो दिन का है। हिंदू पंचांग के अनुसार, दिवाली का पर्व हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर मनाया जाता है। इस बार कार्तिक अमावस्या 31 अक्टूबर को दोपहर 3 बजकर 52 मिनट से शुरू होकर 01 नवंबर को शाम 6 बजकर 16 मिनट पर समाप्त हो रही है। इसके कारण लोग उलझन में हैं कि दिवाली और लक्ष्मी पूजन का सटीक मुहूर्त कब है और पूजा किस दिन करना सर्वश्रेष्ठ होगा।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, दिवाली का पर्व उसी दिन मनाना उत्तम माना गया है, जब प्रदोष काल और निशिथ काल दोनों अमावस्या तिथि के साथ हों। इस समय को मां लक्ष्मी की पूजा का विशेष समय माना जाता है। आमतौर पर इस दिन स्थिर लग्न का समय भी मिल जाता है, जिसमें लक्ष्मी पूजन करने का विधान है। शास्त्रों के अनुसार, लक्ष्मी पूजन का यह समय बहुत ही शुभ और फलदायी होता है।


लक्ष्मी पूजन का महत्व और विधि


दिवाली पर लक्ष्मी माता का पूजन करने का विधान है। कहा जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था और वे भक्तों के घरों में निवास करती हैं। अतः इस दिन धन-धान्य, सुख-समृद्धि और परिवार की उन्नति के लिए मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना विशेष रूप से की जाती है। शास्त्रों के अनुसार, मां लक्ष्मी का पूजन अमावस्या की रात में प्रदोष काल में किया जाना चाहिए, जो सूर्यास्त के समय से प्रारंभ होकर तीन मुहूर्त तक चलता है।

लक्ष्मी पूजन के दौरान घर के प्रमुख द्वार को अच्छे से सजाकर वहां एक दीप जलाना चाहिए। मां लक्ष्मी और भगवान गणेश का पूजन करने के लिए उनके सामने दीप जलाकर चावल, फूल, धूप, नैवेद्य और मिठाइयां अर्पित करें। मां लक्ष्मी के समक्ष लक्ष्मी मंत्र का जाप करें, जिससे उनके आशीर्वाद की प्राप्ति हो सके। साथ ही, मां सरस्वती और भगवान कुबेर का भी पूजन करें, ताकि ज्ञान और धन का वरदान प्राप्त हो।


दिवाली का सही मुहूर्त और समय


वेदाचार्यों के अनुसार, इस वर्ष कार्तिक अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर को दोपहर 3 बजकर 52 मिनट से शुरू होकर 01 नवंबर को शाम 6 बजकर 16 मिनट तक चलेगी। शास्त्रों में दिवाली का पूजन प्रदोष काल और निशिथ काल में करना अधिक फलदायी माना गया है। इसी समय मां लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं, अतः इस समय में पूजा करने से माता लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है।

प्रदोष काल का समय: प्रदोष काल का समय सूर्यास्त के तुरंत बाद के तीन मुहूर्त तक रहता है। इस समय वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुंभ राशियों में जब लग्न उदित होते हैं, तब इसे स्थिर लग्न कहा जाता है और इस समय में लक्ष्मी पूजन किया जाना बहुत ही शुभ होता है। इस वर्ष 31 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 36 मिनट के बाद अमावस्या तिथि के साथ प्रदोष काल है, इसलिए 31 अक्टूबर को लक्ष्मी पूजन करने का विधान अधिक फलदायी माना जा रहा है।

दूसरे दिन का मुहूर्त: वहीं, 01 नवंबर को अमावस्या तिथि 6 बजकर 16 मिनट तक है, और इस दिन भी सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल प्राप्त होगा। अतः यदि किसी कारणवश 31 अक्टूबर को पूजा करना संभव नहीं है, तो 01 नवंबर को शाम 5 बजकर 36 मिनट से 6 बजकर 16 मिनट तक लगभग 40 मिनट का समय लक्ष्मी पूजन के लिए उपलब्ध रहेगा। इस समय में लक्ष्मी पूजन करने का भी विशेष महत्व है।


अमावस्या तिथि, प्रदोष काल और निशिथ काल की महत्ता


अमावस्या तिथि का महत्व इसलिए है क्योंकि माना जाता है कि इस तिथि में मां लक्ष्मी का पृथ्वी पर आगमन होता है। अमावस्या की रात को घरों में दीप जलाकर और रोशनी करके मां लक्ष्मी का स्वागत किया जाता है। प्रदोष काल और निशिथ काल का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि यह समय बहुत ही शुभ और विशेष फल देने वाला होता है।

अमावस्या तिथि, प्रदोष काल, और निशिथ काल की महत्ता के कारण ही दिवाली का पर्व और मां लक्ष्मी की पूजा इन्हीं समयों में करना सर्वोत्तम माना गया है। 31 अक्टूबर को अमावस्या तिथि, प्रदोष काल और निशिथ काल का संयोग होने से इस दिन लक्ष्मी पूजन करना अत्यधिक फलदायी माना जा रहा है।


शुभ मुहूर्त का चयन


31 अक्टूबर को अमावस्या तिथि की शुरुआत दोपहर 3 बजकर 52 मिनट पर हो रही है, जो अगले दिन 01 नवंबर को शाम 6 बजकर 16 मिनट पर समाप्त होगी। इस दिन प्रदोष काल का समय शाम 5 बजकर 36 मिनट से लेकर लगभग 8 बजे तक रहेगा। इस समय में लक्ष्मी पूजन करने का विधान सर्वोत्तम माना गया है, क्योंकि अमावस्या तिथि इस दौरान विद्यमान रहेगी। इसके अलावा, निशिथ काल का समय भी 31 अक्टूबर को मध्यरात्रि के आस-पास रहेगा, जो लक्ष्मी पूजन के लिए अत्यधिक शुभ समय है।


दिवाली के पर्व का महत्व और आस्था


दीपावली का पर्व हिन्दू धर्म के सभी त्योहारों में सबसे महत्वपूर्ण है। इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने से घर में धन, वैभव और समृद्धि का वास होता है। इस दिन हर कोई अपने घर को सजाता है, साफ-सफाई करता है और नए कपड़े पहनकर मां लक्ष्मी का स्वागत करता है। यह दिन केवल पूजा-अर्चना का ही नहीं, बल्कि अपने रिश्तों को मजबूत करने और समाज में सौहार्द का संदेश देने का भी है।


निष्कर्ष


इस बार 31 अक्टूबर को दिवाली का पर्व और लक्ष्मी पूजन करना अधिक उपयुक्त माना जा रहा है, क्योंकि इस दिन अमावस्या तिथि के साथ प्रदोष काल और निशिथ काल का संयोग मिल रहा है। फिर भी, जो लोग 01 नवंबर को पूजा करना चाहें, वे भी प्रदोष काल के दौरान मां लक्ष्मी की पूजा कर सकते हैं।